भ्रातन्ह सहित रामु एक बारा।
संग परम प्रिय पवनकुमारा॥
सुंदर उपबन देखन गए।
सब तरु कुसुमित पल्लव नए॥1॥
एक बार भाइयों सहित श्री रामचंद्रजी परम प्रिय हनुमान्जी को साथ लेकर सुंदर उपवन देखने गए। वहाँ के सब वृक्ष फूले हुए और नए पत्तों से युक्त थे॥1॥
जानि समय सनकादिक आए।
तेज पुंज गुन सील सुहाए॥
ब्रह्मानंद सदा लयलीना।
देखत बालक बहुकालीना॥2॥
सुअवसर जानकर सनकादि मुनि आए, जो तेज के पुंज, सुंदर गुण और शील से युक्त तथा सदा ब्रह्मानंद में लवलीन रहते हैं। देखने में तो वे बालक लगते हैं, परंतु हैं बहुत समय के॥2॥
रूप धरें जनु चारिउ बेदा।
समदरसी मुनि बिगत बिभेदा॥
आसा बसन ब्यसन यह तिन्हहीं।
रघुपति चरित होइ तहँ सुनहीं॥3॥
मानो चारों वेद ही बालक रूप धारण किए हों। वे मुनि समदर्शी और भेदरहित हैं। दिशाएँ ही उनके वस्त्र हैं। उनके एक ही व्यसन है कि जहाँ श्री रघुनाथजी की चरित्र कथा होती है वहाँ जाकर वे उसे अवश्य सुनते हैं॥3॥